ईं खातर अठै आदमी फकत कमावै

है के निज रा बेटा-बेटी, भाई-बहनां

रा कारण कूंडा करणा है, अनै बचावै

है ईं री ही खातर, कोई जावै रह ना!

थक जावै, जोड़तौ-गांठतौ, इण चक्कर में

पेट मांय खावै नीं गावौ तन रै ऊपर

पैरै कदै पूरसल, दुभरिया ‘चर-भर’ में

लागै इसा, के मर जावै भरतौ-भरतौ भर।

दूजै कोई काम, कोई ब्यौपार बिणज री

बात कणांई बींनै आखी उमर नीं सूझै

डूब्यौ रैवै बियांई, नद्दी मांय करज री

मरत काळ री, छेकड़ सांस ब्याज में पूजै।

ब्याह व्यवस्था जद तांई नीं टूटैली

निरधनियां री गैल भूख सूं नीं छूटेली।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : मोहन अलोक ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण
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