म्हारै रजथळ राजस्थान मांय तौ आणौ
नीं आणौ, इकसार ई हुवै है बसंत रौ
म्हैं तौ उम्मर में कोनी देख्यौ कमठांणौ
ईं रौ कदै फूलतौ-फळतौ, 'उमाकंत' रौ
चक अठै जे चालै तौ उल्टौ ई चालै
हरियांखी नै निठ्ठ बचाता बीज नास सूं
आक खींप रा बोझा लड़ता सांस-सांस सूं
हुवै जिका, बांनै ई रठ री आग हवालै
कर देवै है औ बसंत आवण सूं पैलां
बूढ़ी धरती रै धौळै केसां री दांई
ऊभी सूकी खींप डांगरां री उलझाई
अर भुळस्योड़ा आक, करै ऊभा अधगैला
स्वागत रूत राजा बसंत रौ, भेड़ चरावै
'कामदेव' तौ अठै, अनै 'रति' भूख खिलावै।