चितराम 'त्रिलोचन' रौ है उण री पुस्तक पर
थिर बैठ्यौ, ज्यूं बैठ्यौ हुवै कोई संन्यासी
मंथन रौ विस पीयोड़ौ ज्यूं खुद अविनासी
सीधौ त्रिसूळ धारण करियोड़ौ मस्तक पर।
अै ऊभा तीनूं सूळ, त्रिलोचन रै माथै,
अै सूळ त्रिलोचन सह-सह’र धार्योड़ा है
अै तीनूं मूळ त्रिलोचन सूं हार्योड़ा है
ई सांस समर में, अेक अेक कर, या साथै।
त्रिलोचन से तीसरी आंख मै’णत री है।
उण इणी आंख सूं देख्यौ है सारे जग नै
स्सै उमर, बुहार्यौ है श्रम-साधक रै मग नै
आ आंख, आंख तीसरै जगत री है।
ई श्रम-कवि री आ आंख हुवै है तद रोसन
जद हुवै मजूरां अर किरसाणां रौ सोसण।