एक, एक नै दाय अनै दूजै नै दूजी
चीज, उल्ट जाबक पैली सूं आछी लागै
के कारण है ईंरो, ओ रस क्यूं कर जागै
बिलकुल ही विपरीत, एक दिन कवि सूं बूझी
हूँ आ बात, कांई कारण है, रंग कठै ही
काळो आवै पिसन कठै ई आवै गोरो
मोटै होठांवाळी पर मर ज्यावै छोरो
अफ्रीका रो, अर देखो आपणै अठै ही
पतळे-पतळे होठां री कल्पना करै है?
कवि बोल्यो, अै सैंसकार है, जामै सागै
जिका मिनख रै, अर बणता सदियां ही लागै
है आंनै, अै खसबोई री भांत तिरै है
किणी कौम रे खून मांय, प्राकृत सूं पाई
घणी चीज म्हे जिकी, म्हारो स्वभाव बणाई।