बार त्यूंहार बापड़ा होळी अर दीवाळी

आवण ने तो अब बी आवै है, पण फीका-

फीका रैवै चाव धोकण रा, अनै सलीका

पै'लांवाळा अबै कठै है अब तो खाली

लीक पोटण जै'ड़ी गत है, हूं जद टाबर

हो तो म्हने याद है म्है से महिनै-महिनै

पैली कर-कर याद, धपाया करता जी नै

काढ्या करता दिन उडीक रा एक-एक कर।

शहर जा'र बाबो त्यूंहार से सीधो ल्याता

चादरड़ी रै पल्लै थोड़ा-सा सक्कर, गुड़,

चावळ, जिणनै देखण तांई पड़ता धुड़-धुड़

म्हे सै भाई- बैन पड़ौसी देखण आता।

हा अभाव रा चाव भलाई पण साचा हा

आ: बै दिन, भावना भरया कितणा आच्छा हा।

स्रोत
  • पोथी : सौ सानेट ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • प्रकाशक : ग्राम मंच प्रकाशन
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