आं ब्यावां-कावां पर कूड़ी स्यांन बधारौ

हौ थै जिकी, छोड़ देवौ जे अेक साल री

खातर, अर खा ज्यावौ सोगन बिना उधारौ

लियां करण री, कारण, तौ अै भर्यां माल री

जिकां दुकांनां बैठ्या है सुअरां री दांई

सूंस हुयोड़ा पंखा नीचै ढाळ्यां गादी

चौड़ै आती दीसै आं री लालाई

अनै दुकांनां रह ज्यावै सांकड़’र आधी।

तन पर पैरण रै गाबां रै मोल मुलावण

सूं थोड़ा भर्यां बगै अै बैंक, तिजूरी

अै तौ भरै आप जद छोरा-छोरी ब्यावण

री खातर लुटवावौ भेळी, गांठी-पूरी।

ब्या-सावां पर नईं लुटावौ जे थै, आं री

अेक बरस में खतम हुवै सरमायेदारी।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : मोहन अलोक ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण
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