अेक


सबदां रा थे अरथ बण्या और बस्या 
आप रै रूप रूबायां रा औ बंध कस्या 
आप री जोत ई प्रगटी मांय'र बारै, 
आप बण म्हारै अंधारै हिय दीप चस्या।

दो 

माथै पै बळीतै री भरोटी, छोरो
गोदी में लियोड़ौ है, दोरौ-स्सोरौ 
दो च्यार बकरड्यां नै है घेरयां आवै, 
ज्यूं करज चुकाबौ है कोई इण भो रौ।

तीन 


मेहमान ई दोपारै मझ में आया 
रोट्यां तो बणाणी ई है, थे छाया 
माची नै खड़ी कर'र करी चूल्है पर, 
है रूप रै साथै ई थारा गुण जाया।

च्यार 


थारो ओ देव, महादेव री पूजा करणौ 
परिवार री सुख-स्यान्त नै चिंतित फिरणौ, 
पूजा में ई बिरछ री रिछपाळ नै प्रगटै, 
पीपळ रै लिपटणौ अर मुट्ठी भरणौ।

पांच

 
आप घर झाड़-बुहार करौ कंचन सो 
कोई तापस, कोई देव रै निरमळ मन सो, 
आप हो रूप री देवी थारौ घर मिंदर 
जग थां सूं ई रमणीक है नन्दन-बन सो।

छह

 
ओढणौ नाख, अेक माची पर 
पिछोकड़ कर खड़ी, आडी भू पर 
आप नहावौ तौ नभ मंडळ सूं 
देवता फूल बरसावै रूप पर।

सात

 
लाळ सूरज रै पड़े जद देखै बो 
खेत रै मांय यूं इमरत लुटतौ 
टीबड़ी माथै अेक टापी बैठ्या
आप जद गीगलै नै बोबौ दयौ।

आठ

 
खेत, सिट्टा पै चिमकती आ कुंकू चादर 
बाजरौ आप रुखाळौ हौ खड्या डूंचै पर 
हाथ ऊंचा'र करौ हौ जद हाकौ, 
थारी छात्यां पै पडै सायनै सूरज री निजर।

नव 


सिर माथै घडौ अर गोदी छोरौ 
ऊंचाण पै है गांव, चढणौ दोरौ 
चलतां रा भुंवै पग, तौ ई थे कैवौ
मा और सहेल्यां नै, सासरौ सोरौ।

दस


नहरी नै गयो चाट, बिरानी खाग्यौ 
गोरी री हर एक रात सुहाणी खाग्यौ 
स्सा हूंस खतम कर दी ढोलै सूं मिलण री 
ओ कातरौ 'मरवण' री जुवानी खाग्यौ।

उपसंघार


'जेर' रै अर 'जबर' रै झगड़े में, 
'काफिये' अर ‘बहर' रै झगड़े में 
म्हनै क्यूं खांमखां रा खींचो हौ, 
भाईजी! थारै घर रै झगड़े में।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : मोहन आलोक
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