(1)

झिरमिर—झिरमिर मेह बरसै है
बादळिया तो के बरसै है
मरुधर रै तिरसै धोरां पर,
'थारो' रूप, अछेह बरसै है!

(2)

कूदता अर उछळता भाखर सूं
ऊतरो 'थे' मचकता भाखर सूं
सासरै जावणै री तावळ में,
मुड़नै देखो नीं ढळता भाखर सूं!

(3)

चिड़्यां, सुवागत रा सुर सुंवारै है
'उषा' री आरती उतारै है
गीत गा—गा'र सूरज रै ब्याह रा,
'बहुवड़' नैं आंगणै बधारै है!

(4)

आप रै हिय—पटल बसै भंवरा
सुरख मुखकंवळ पर हंसै भंवरा
'आप'री कस—कस्योड़ी कुड़ती सुं
बाहर निसरण तांई खसै भंवरा!

(5)

मींडियां अेक—अेक कर गूंथी
फूटरी ल्हस री 'थे' लहर गूंथी
नेवगण बण परा ज्यूं आभै में,
घटावां री करो हो सिर—गूंथी!

(6)

फैलतो, बधतो ओ तारामंडल
तारकां री आ अथिर—सी झिलमिल
सूरज ज्यूं 'आपरै' मिलण माथै,
सुरण मोहरां करी है निछरावळ!

(7)

आप बिन सुध—बुध खोवै सागर
लहर रै आंसुवां रोवै सागर
रात पून्यू री पण चुपकै—चुपकै,
'आप' रा पदकमल धोवै सागर!

(8)

वा देखो रात री छंटी स्याई
वा देखो किरण री महक आई
सुणो! वो दूर बोलतो मुरगो,
वा थारै 'रूप' लिन्धी अंगड़ाई!

(9)

नया ही गुल खिल्या मारग में
भाव मोती मिल्या मारग में
सबद में रूप जद 'थारो' प्रगट्यो,
स्यांति रा सरग खुल्या मारग में!

(10)

आप जद भोग सूं निपट्या तो फळ्या
थारै रति रूप मांय प्रगट्यो तो फळ्या
बेल बण, लाज रा लंगर खोल’र
‘आप’ जद बिरछ सूं लिपट्या तो फळ्या!

(11)

थांनै देखण रा हूं जतन करूं, देखूं हूं
थांरै चितराम मांय रंग भरूं, देखूं हूं
है कुण कठै अर के ठाह है देखै कुणनैं?
‘आप’ नै आप ही देखो हो कै म्हूं देखूं हूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा जनवरी-मार्च 2015 ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • संपादक : अमरचन्द बोरड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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