अकबर पथर अनेक, कै भूपत भेळा किया।
हाथ न लागो हेक, पारस राण प्रतापसी॥1॥
अकबर समंद अथाह, तिहं डूबा हींदू तुरक।
मेवाड़ो तिण मांह, पोयण फूल प्रतापसी॥2॥
अकबर घोर अंधार, ऊंघाणा हींदू अवर।
जागै जग-दातार, पोहरै राण प्रतापसी॥3॥
अकबर कनै अनेक, नम-नम नीसरिया नृपत।
अनमी रहियो एक, पुहुवी राण प्रतापसी॥4॥
गोहिल कुळ धन गाढ, लेवण अकबर लालची।
कोडी दै नहँ काढ, पणधर राण प्रतापसी॥5॥
कळपै अकबर काय, गुण पूंगीधर गोडिया।
मिणधर छाबड़ मांय, पड़ै न राण प्रतापसी॥6॥
बंधियौ अकबर बैर, रसत गैर रोकी रिपू।
कंद मूळ फळ कैर, पावै राण प्रतापसी॥7॥
भागै सागै भाम, अमृत लागै उम्बरा।
अकबर तळ आराम, पेखै जहर प्रतापसी॥8॥
अकबर जतन अपार, रात दिवस रोकण करै।
पूगी समदां पार, पंगी राण प्रतापसी॥9॥
वसुधा किय विख्यात, समरथ कुळ सीसोदिया।
राणा जस री रात, प्रगट्यो भलां प्रतापसी॥10॥
अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दूसरा।
पुनरासी परताप, सुजस न जासी सूरमा॥11॥