उदिम संजै ज्यूं आरसी, हाथि सदा जौ होई रे।

बदन बिलोकै आपणौं, थारै काट लागै कोई रे॥

साजन सुणि रे सीख द्यौ, सुणि लै मीठी बातौ रे।

जगि दीवाना जीव जुलि, करि लै कासी जातौ रे॥

समझि सयाणा समंडी रे, सौंज सकल ले बांधी रे।

हलई चालै हेत स्यूं, करतां सोर्‌ही कांधी रे॥

ग्यान खरच गुर गांठि करि, हाजिर हो हुसियारो रे।

परदेसी पड़ि सोइ मा, थारी तसकर ताकै लारो रे॥

चावल मैदा चूरिवां, खाइ खटरस भौंगौ रे।

चेतनि रहु चूकै रखे, जासी आयौ जोगौ रे॥

कड़वा तूंबा नालिकेलि, मन मति चाखै मीत।

आगै वोखदि का नहीं, जबरु पड़ैला पीत॥

रस गोरस गोहूं गरी, दुनिया चरता चीजौ रे।

कोरै आंबरि काठ की, पड़ि मारैली बीजौ रे॥

अगति जांहिलौ आंधला, साचै मारगि चालो रे।

भाजैं करा भुवां लगूं, निकसि जाहिं नटसालो रे॥

साल सूल सब स्वाद का, सकल सरीर मांही रे।

निसबासुरि नेड़ी धखै। भीतरि भरमैं भांहे रे॥

खानि खसेरी परजलै, पावक प्रगट्या झालो रे।

मेरी करि करि बलि मुए, बहसि बुलायौ कालो रे॥

दौं दाधा दुख पूरिया, दोजगि दीन्हा आणि।

लाज नहीं अति लालच्यां, तऊ सुतो वह ताणि॥

मुकति खेत निधि मोतिया, सिवपुर सागर सीपो रे।

ता परि प्राणी पाव दे, परहरि दूजा दीपो रे॥

साचा सीसा सांडसी, सोगी सुरड़ा साको रे।

अवलि अबीधौ रहु इहां, है हरि नीड़ा नाको रे॥

आवण जाणी ऊपरै, ऊंघण याही धूर्‌यौ रे।

पारधी पासु पसारियौ, कुरंग पड़ै जिनि कूड़ौ रे॥

जारी चोरी चकरी, बेद बणिज ब्यापारो रे।

ब्याज बड़ाई क्रिख करम, कुलि बोया करतारो रे॥

नैनख दीयां नर बहै, सगलै याही साखि।

सुई धागै क्यूं सरै, पख बिण बीधौ पहलै पाखि॥

सूनां पांसू सार की, मुगध मानैं संको रे।

नीमाणा निहरौ रहै, निरखि निलाड़ी आंको रे॥

आख्यर वोली पारसी, सुणि लै बांवन बीरो रे।

नाभि सरोवर निरति जल, पीयां पैली तीरो रे॥

मति मसि कागद कां मता, देही दरिया दोत्यौ रे।

लेखणि लोतर कर कंवल, दिलकरि दीदा जोत्यौ रे॥

रिण दे होई ऊजलौ, सहजि प्रकासै सूरो रे।

ननि सूंनाऊं छेकतां, तिन घरि बाजै तूरो रे॥

जुगि जुगि छानां क्यूं रहै, जिनि जस जीत्यौ नीसाण।

साचौ अंत सीलतां, त्यांह की साखि भरेलौ भाण॥

बाचा खूली बल लह्यौ, जन जाणैं सब डावो रे।

आपै आंतर ऊघड़्या, बैरागर बड घावो रे॥

बाकुल मणिया बाहि दे, सुणि हसि हीरा चोजो रे।

धारानगरी निकट धन, भेदी राजा भोजो रे॥

चौदह विद्या चालवणि, गाहा गुणां निधानो रे।

कौड़ी केल विलाख करि, दीजै दीरघ दानो रे॥

सूवा कठिन कठंजरौ, पूठी परबत राजो रे।

कुबधि बिलाई वोलखै, तौ तूं सब पंध्यां सिरिताजो रे॥

राती चंचां चोल रंग, चवतां चोखी चास।

ररौ ममौ पढि रूसि मा, प्रीतम पंजरि बास॥

सतजुगि सहरा जे रहैं, साधत मरदत कामो रे।

केवल कांटा बाहिरा, रती जाणैं रामो रे॥

भूला भूंदूं स्वाद सुख, दिल दीन्हीं मुकलाए रे।

परलै जासी पसरती, पाछी लै पछिताए रे॥

निसुसावा नीठाह बिन, जड़ जोलै खर खेतो रे।

वोछी परधति प्यंड पड़ै, बेगि बलै सिरि रेतो रे॥

मन माला मगहर मतौ, अडिग जु अजपा जापो रे।

सति सुमिरण संगि सीलब्रत, काटण कलि बिख पापो रे॥

दरसण दीठा देव का, पूगी पूरण भेट।

जगि हरदास जनमई, जिनि पै भरि पीया पेट॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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