श्री सरसति वाणी सरस, प्रणामुं हुं तुझ पाय।
गछपति रा गुण गाविसुं, तुम्ह तणै सुपसाय॥
देवा साह रो डीकरो, श्री जसवंत जी रो सिस।
गछ रो नायक गह गहै, रिव युं धनजी रो रिख॥
पंच महाव्रत पाळिजै, गाळै आठ गुमान।
जिण सारण मोटो जती, धन गछपति धन्य धन्य॥

॥छंद॥

’धनो सदा गछ रो मन धारै, ससि वंद सांभळियो जगसारै।
दाखां रूपा ऋषि श्री हूणो ऊगो सहस किरण आजूणो॥
चिहुं खंड जीवा ऋषि थी चावो, अरज करणे सह को आवो।
वरसिंघ दोय हुवा वैरागी, तरुण पणै जिण त्रिसणा त्यागी॥
जसवंत नणा पराक्रम जाणै, वीर धीर कवियण वाखाणै।
रूपो हुवो गच्छ रो राजा, सालम सदा दो दिन साजा॥
प्रतपै पाट दामो पाटोधर, नर भाइक लाइक मोटो नर।
सगळा थी धनराज सवाई, ठावी जसवंत री ठकुराई॥
गछ में धनो सदाई गाजै, वाजा सुजस तणा नित बाजै।
कवण धना री मींढ कहावै, आदि वडा भड़ पायै आवै॥
धनजी तणा जती सब धोरी, आखां की बातां अजमेरी।
अचार्य  रा रिस इधकारी, सुजस जिया रो पृथिवी सारी॥
कुमर पणै जिण संजम लीधौ, दान अभै खटकाया दीधौ।
जसा रिख जंबू सारीखो, पुनवंत रो लाधो पारीखो॥
मानावत मुनिवर मतसागर, वैरागी उदयो वैरागर।
सगुर पसाय गह गाजै, राज जीहा रा ध्रुव ज्युं राजै॥
जैसिंघ कान्ह बड़ा छळ जागै, लुळि लुळि श्रावक पाये लागै।
मोटा जति वडालै मावै, पावां, रहै तिके सुख पावै॥
रिजवी सदा पराक्रम रूड़ै, जूतो भलां सुजस रै जोड़ै।
तपसी धरमो गुण रो गिरवर, साधां सिरै सुजस रो सरवर॥
चोरड़ियो जिणदास चिंतामणि, भल चोके जह रास सिवद भणि।
बाल ब्रह्मचारी बुधसागर, अंग जिणदास पुनिरा आगर॥
साम तणै बळ स्थिवर सदाइं, कदे न दाख कावळ काइ।
आगै हीतायो इधकारी, भूप बड़ा प्रतबोध्या भारी॥
वसता तिण रै पाट विराजै भरीयौ मेघ तणी पर गाजै।
जसवंत स्थिवर जिणवर जाणै, आखा गौतम रै अहिनांणै॥
चैथ कुमरपाळ जग चावा, मुनिवर वड़ा वड़ा लै मावा।
भाबू श्रीपाल भलाभळ दानी, वधती वेस चढंती वानी॥
भाबू उतर धर इधकारी, घर मुरधर दीठो व्रतधारी।
तामा तणा सदा जस ताजै, वड़हथ ताम श्रीपाल विराजै॥
झंझण आठ करम नै झाड़ै, सकजो समरथ तेण सघाड़ै।
उत्तम असहा मान उतारै, तारग नाव जगत नै तारै॥
चोलो नै पांचो सुखदाई, जसवंत समरथ रा गुरभाई।
तपसी गोपालो जस ताजै, भव भव रा बांध्या भय भाजै॥
सामधरम रायमल सोहवै, वडहथ संजमरी विधवेवे।
विसनो कहै बडाळा वायक, लाखां जतीया माहे लायक॥
भारी जती कहां इम भीवो, दणियर धनजी वसरो दीवो।
गोदो तपसी गोतम ग्यानी, झ झण तणा धरम रो ध्यानी॥
भादो ने सिवराज सवाई, लाहानूर अण बरताई।
डांवर जसो वडाळै दावै, अष्ट करम नुं आण मनावै॥
धरमो जती स्थिवर वसता रो, आखां जिण रो घणो उभारो।
बाघो सीसोदयो वैरागी, तरुणप्रभ जिण त्रिसना त्यागी॥
प्रणपति करै आगन्या पाळै, निजर अत गछनायक न्हाळै।
कोटां गढां मढां जस गायो, सुगुरु वचन सगळै सरदहीयो॥

॥दूहौ॥

साराह मोटा सुपह, साराहै संसार।
राज अखी धनराज रो, तपक कायम करतार॥

॥छंद पांघड़ी॥

करतार कियो मोटै कर्म, धनराज जती साचे धरम।
वड़ श्रावक जती करी बात, पदवीधर थपीयो धनो पात॥
आवीया संघ अेता उदार, जैतारण बूठा रूप धार।
धनराज तणा श्रावक सधीर, निलवट चढता सदा नीर॥
सीरोही सहरां मैं उचंग, गढां कोटा जिण रळी रंग।
भंडारी उदयसिंघ भल, मोटीम धरे मोटीम मल॥
पोरवाड़ रामो पातिसाह, सांभळ्यो श्रवणे वडो साह।
बोबो ने अमरो ईख, सदगुर री माने भली सीख॥ 
राजावत दूदो वडी रीत, पालै गुर चरणां घणी प्रीत।
सेवाड़ी देदो वडो साह पातां देतो नित प्रवाह॥
कुळ दीपक केसोकरण, वाखाण करै वरणो वरण।
दाखीजै दीवो धर्मदास, आवै नित अैहण करे आस॥
सादड़ी साह तेजो मसद, चावा घर जेतली सूरचंद।
सकर वा भला विरद साह, पीरो ज्या दीजै दत प्रवाह॥
आउवै सहर समरथ अभंग, रूपक जस राखै घणौ रंग।
रोहितास अनै इसर रसाळ, पूरवली पाता करे पाळ॥
सकरमण चंडाळीयो वडोसीह, लोपे नहीं कुळवट तणी लीह।
कल्याण तोलावत वडै त्याग, जगड़वा साह विरद याग॥
गुगळीयो कचरो गुण गंभीर, घरवट घरे गिरवो गहीर।
नरनाथो नरो नरेस, दीपावै मुरधर वडो देस॥
करमचंद जसो कंवरो करन, दीवरावै दुथियां वडौ दंन।
काळू नै महक्रन कुळ कंधाळ, संघ नाइक धरमो सुविसाळ॥
जस गाहक जोघो न तसीह, पीपाड़ सहर अणभंग अवीह।
कमराज अनै ऊदौ अथाह, सिंघनाइक सरीखा वडा साह॥
राव सघार लोढा राजान, पदमसी तेजो पुन्य प्रधान।
सुरताण अनै सैसो सुजाण, मोडीजै प्रसुणां तणा माण।
वीलसीजै माल मोटा वीचार, भलां दानी जुता भळै भार॥
हरखा नै सांवळ राज हंस, प्रघळा ग्रथ खरचीजै प्रशंस।
जसराज फळो कळीयंणा तन, मेर री बराबर बड़ा भन।
सावो देवा बगड़ी दातार, भुज झाल्या जस रा बडा भार।
नव कोटी ना बरीया नरेस, पातां दीजै दान असेस॥
सोभाग लीयो मल राजसाय, भल पदवी थापी भल भाय।
कळीयांण तेणि कुलरो कंघाळ, पातलसी पातां प्रति पाळ॥
भारमल कवरो बडभाग, जैतारण जुना छळ जांग।
कविराव वखाणै कोटि गढ़ पगारा घरणो आदि पढ़॥
सकमाल नगावत वडै़ साज, लोपी नहीं पीथो बडलाज।
खुदाळम मालिम खेतसीह, दिन दिन जीम चढ़त सदा दीह॥
गोपी पीपाड़ो वडै गात, दाखीजै ईला सिरै अवदात।
कोठारी ताराचदं तिलक, दळनायक दीपै बडा दक॥
कृष्णगढ़ अमरो घणै आध, भल दानी भोपत बडै भाग।
आवीया गुरु मोटै उछाह, सुनोयागी पींचा बड़ा साह॥
कुलदीपक कुमर कहि कपूर, संघनायक राजसी वंस सूर।
बापणो राय जोधो बबाल, महाराण घडी जस री माम॥
आवीया सगुरु मोटै उछाह, पाता नै रूपीया दै परबाह।
मेवाड़ धरा चावा मसंद, मेर री बराबर बड़ो मास॥
जीवराज बाध जाडै वखत, तुडताण कचारा कुळ तखत।
धनराज वदीजै मोटै धर्म, कुल दीपक मोडै आठ कर्म॥
संवत सोळै सताणवै वरस, संघ थाट मिलै जेतारणर।
फागुण सुदि पंचम सुभवार, गछ नायक थाप्या गछ सिंणगार॥
बड स्थाविरां की बड़ी बात, गछनायक धनजी बड़ै गात।
पावीयां दरसण हुवै पुन, मुनीराय मुनीसर मेर मन॥
थूळभद्र थावचा जिसी थोभ, सगळा ही गछरी वधी सोभ।

॥दूहो॥

सकजै गछ वाछी सिधा, सहु जाणै संसार।
पाटोधर पदधी तणो, भुजां तुहारी भार॥

॥छंद॥

भुज भार तो नै जनै भाळ्यौ, थाय शुभ तीर्थंकरं।
रात दिन श्रावक करै सेवा, घणी धरवट ज्यां घरां॥
वुह देस वाचाथिवर च्यारूं, अभंग जिणरा उमरा।
धनराज पदवी भालां पाई, ग्यान गिरवरा॥
गंगाजळ निरपळ कवळ, राज अखी धनराज। 
भल सास्त्र सुभर भरयो, गाजै गहरी गाज॥
ग्यान रो गोतम जिसो ग्यानी, धार पग खांडा धरै।
कारमी वातां कदे न करै, कह्यो केवल तिम करै॥
मुनिराव चारित सदा निरमळ, नकस जड़ीयो नगरा।
धनराज पदवी भलां पाई, ग्यान गिखरा॥
गुण सागर गौतम जिसो, गौतम वाळौ ग्यांन।
मुख दीठां सांत मिळै, दीयै छकायां दान॥
दिन प्रति शास्त्र अरथ दीजै, दुनी आवै देसणै।
तुं भलां दामा पाट दीपै, घणु जस महिमा घणै।
थिर करै थापी वात थेरां, साह जाणौ संघरा॥
चोरास्यां सोह चाढणो, महा अमोलक मन।
गछ गुजरात्यां गाइयै, तरवर देद सुतन॥
कुल भांण देदा तणो कहिये सुजस सह कोइ सवे।
परभात लागै जगत पायै, वित वसुधा विद्रवै।
दाखीजै शस वद भलै देसे, अग जाणेइंदरा॥
 
॥कवित्त॥

गौतम सरिखै ज्ञान, ध्यान गडपति धुरंधर।
काछ वाछ लिकळंक नरां, सिरहर मोटो नर॥ 
दामा थी दीपतो सदा रूप थी सवाई।
वरसिंघ जीवा वडम, ठांमी मोटी ठकुराई॥
जसराज सवाई जागीयो, कवि वेंणो कीरत करै।
परताप सदा धनराज रो, वड़ साखा ज्युं विस्त रो॥
स्रोत
  • पोथी : ऐतिहासिक काव्य संग्रह ,
  • सिरजक : जैन कवि वैण ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : मुनि श्री हजारीमल स्मृति संस्थान, ब्यावर (राज.)