हिन्दुराइ जीपिय कोट हेळ, वाधयउ जेम सामन्द्र बेळ।

साथां ब्रहास अति अस्सहास, आसथाम हरि पूगी सुआस॥

हिन्दूराव चूंडा ने आनन-फानन में दुर्ग जीत लिये। वह समुद्र की उताल तरंगों के समान बढ़ा। उसकी सेना में अतिचपल अश्व थे। आशन्वित राव की भगवान ने आशा परिपूर्ण की। (यदि पाठ ‘आसथान हरि’ है तो अर्थ होगा ‘राव आस्थान के वंशज राव चूंडा की आशा फलीभूत हुई)॥

स्रोत
  • पोथी : छंद राउ जइतसी रउ (छंद राउ जइतसी रउ) ,
  • सिरजक : बिठु सुजा ,
  • संपादक : मूलचंद ‘प्राणेश’ ,
  • प्रकाशक : भारतीय विधा-मंदिर-प्रतिष्ठान, बीकानेर
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