विष्णु विष्णु भण अजर जरीजै, धर्म हुवै पापां छूटीजै।

हरिहर हरि को नाम जपीजै, हरियालो हरि आण हरूं।

हरि नारायण देव नरूं।

आसा सास निरास भई लो, पाईलो भोक्ष द्वार खिणू॥

हे प्राणियों! 'विष्णु-विष्णु' ऐसा सुमरण कर, अजर काम-क्रोधादि को जीर्ण कर दीजिये जिससे धर्म लाभ होगा और पापों से छुटकारा पा जाओगे। अन्य चर्चाओं का परिहार कर ईश्वर नाम का जप करना चाहिये, दूसरी भावनाओं को मिटा देने से हरि ईश्वर आनन्दप्रद प्रतीत होगा तथा देवताओं और मनुष्यों में हरि नारायण स्वरूप दृष्टिगोचर होगा। सांसारिक आशाओं से बंधे श्वास जब निराशा हो जायेगे तब क्षण मे ही मोक्षद्वार को पा जाओगे।

स्रोत
  • पोथी : जांभोजी री वाणी ,
  • सिरजक : जांभोजी ,
  • संपादक : सूर्य शंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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