राणा धीर धरम रखवाळा।

थूं रघुकुल रा वटवाळा॥

थूं रजवट रा वटवाळा॥

वीर प्रताप राम रा पोता, जस रा जगत उजाळा।

भलां पाळणो खलां खपाणो, चोसट घड़ी आपरा चाळा॥

दो दरियाव तरय्या इक साथै, चेतक चढ़वा वाळा।

खम्या क्रोड़ दुख छोड़ सबी सुख, खम्या खोट खबाळा॥

मेवाड़ा मेवाड़ वणाई, रजवट री पटशाळा।

एड़ी ठोड़ दियौ अंगूठो, बढ़तो गियौ बढ़ाळा॥

थारो नाम कान सुण होवै, मुकना मद दंताळा।

मनखांपणौ सिखायौ सागै, मनख मात्र रा वाळा॥

खोटां री छाती में खटकै, हाल हात रा भाला।

एकलिंग रै रिया आशरै, दिया दुशमणां टाळा॥

स्रोत
  • पोथी : चतुर चिंतामणि ,
  • सिरजक : चतुर सिंह ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय
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