वाद विवाद फिटाकर प्राणी, छाडो मन हठ मन का भाणो।

काही कै मन भयो अंधेरो, काही सूर उगाणो।

नुगरा के मन भयो अंधेरो, सुगरां सूर उगाणो।

चरण भी रहीया लोयन झुरिया, पिंजर पड़यो पुरांणो।

बेटा बेटी बहण भाई, सबसै भयो अभाणो।

तेल लियो खल चौपै जोगी, रीता रहीयो घाणो।

हंस उडाणो पंथ बिलंव्यो, कीयो दूर पयाणो।

आगै सुरपति लेखो मांगै, कही जिवड़ा क्या करम कमाणो।

जिवड़ानै पाछै सूझन लागो, सुकृत नै पछताणो॥

हे प्राणी! वादविवाद को धिक्कारने योग्य समझो। मन के दुराग्रह को तथा मन को अच्छे लगने वाले विषय को छोडो। किसके मन मे अंधेरा छाया? और किसके मन में ज्ञान रूपी सूर्य का उदय हुआ?

जो गुरुविहीन हैं उनके हृदय में अंधेरा हुआ है और जो गुरुमुखी है उनके दिलों में ज्ञान रूपी सूर्य का उदय हुआ। वृद्धावस्था में जब पैर लड़खड़ाने लगेंगे, नेत्रज्योति निस्तेज हो जायेगी तथा यह शरीर जर्जरित हो जायेगा। पुत्र-पुत्री, बहिन और भाई इन सबसे तू अपमानित होगा।

जैसे तेल निकाल लेने के बाद खली पशुओं के योग्य ही रहती है। घानी रिक्त हो जाती है वैसे ही शरीर से प्राण रूपी हंस उड़ेगा और अपने रास्ते लग कर दूर देश के लिये प्रयाण करेगा तब इस शरीर की कोई सार्थकता नहीं रहेगी।

परलोक मे ईश्वर जीवात्मा से हिसाब मांगेगा कि हे जीव! कहो, तुमने कैसे कर्मों का उपार्जन किया है? तब जीव को अपने जीवन का पूर्वावलोकन करने पर कुछ भी नहीं दिखेगा। और वह अपने कर्मों के लिए वहां पश्चाताप करेगा।

स्रोत
  • पोथी : जांभोजी री वाणी ,
  • सिरजक : जांभोजी ,
  • संपादक : सूर्य शंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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