भारत वांचो

सबी नर भारत वांचो रे॥

सबी नर भारत वांचो रे, सही सुख योहिज सांचो रे।

घरो घर भारत वांचो रे, सबी नर भारत वांचो रे॥

भारत में अवतार लियो नै, भारत शूं अणजाण।

वी भारत रा पूत नहीं, पण भारत रा पाषाण॥

भारत शूं भ्रमणा मटै रे, भारत शूं भय जाय।

भारत नै भगवान वणायो, सुख रो सांच उपाय॥

भारत यो रतनागर सागर, ईं रो छैह पार।

सारा ही नर नार विचारो, वेदां रो अवतार॥

भारत भार उंचायो सबरो, आरत भार उतार।

भारत व्है’तां भारत रो, यो कई हाल अबार॥1

जगावण

जागो जागो रे भारत रा वीरां जागो।

थांणों कठै केशरय्यो वागो॥

थे हो पूत वणांरा जाया, (ज्यांरो) जश सुरगां तक लागो।

अबै एश आराम वासतै, मत कूकर ज्यूं भागो॥

दारु दुरजन संग निवारो, पर दारा नै त्यागो।

यो आळस रो अवसर नी है, सोवै सोहि अभागो॥

अंगरेजा री अक्कल सीखो, अवगुण छोड़ो आगो।

ऊभा मूत्यां मत नी आवै, समै काम शर लागो॥

ईंन्द्रय्यां जीत जीतग्यो मननै, सो सरदार सभागो।

यारों होय गुलाम रहै सो, कुल नै देवै दागो॥

रै’त पाळ रजपूती राखो,ईश्वर में अनुरागो।

छोड़ों झूंट घमंड खार नै, पळ पल दो आगो॥

स्रोत
  • पोथी : चतुर चिंतामणि ,
  • सिरजक : चतुर सिंह ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय