नक्करा मोत का वाजे, कि सावन मेघ ज्यूं गाजे

हां रे मन, समझ वे करना कि सतगुरू नाम लीये रहना

अमूलख अवसर आयो, दुर्लभ देह मनुष को पायो नक्कारा...

सिर पर, यम वे लागा, खबरदार चेत मत भागा

क्षमा की खड्ग धरना ने, कि नाम की बात करना वे नककारा...

शील संतोष की चोकी, धिरज से ध्यान धरने की...

ग्यान का भर वे गोला, कुबुद्धि दुर कर भोला नक्कारा...

सोदागर सोदे आया वे, समझ ने मन मेरा वे

अनित्य का भरोसा केसा, छिन में हारेगा एसा नक्कारा

लक्ष लगी निस-दिन मेरी, लग गइ अलख सें दोरी

आनंद घन, गवरी पाइ, सत्गुरू चरन चित्त लाइ नक्कारा...

स्रोत
  • पोथी : गवरी बाई (भारतीय साहित्य रा निरमाता) ,
  • सिरजक : गवरी बाई ,
  • संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम