मन तूं भरम भूल्यो बीर।

मृगतृष्णा जल देखी ध्यायो, परिहरि परगट नीर।

सांचा प्रीतम परिहर्या रे, कूड़ै कीयो सीर।

भीड़ पड़्या भग जायगा रे, कोई बंधावै धीर।

माता पिता सुत भामिनी रे, इन संग पावै पीर।

धन जोबन मति देखि भूलै, ये सब नांही थीर।

जगत धार्यो राम बिसार्यो, गह कौढी तज हीर।

अंत काल पछितायगो रे, सुन काफर बै पीर।

मर्म-कर्म सूं लागियो रे, समझ्यो नीर खीर।

काचा सब कल जायगा रे,ज्यूं पावक संग कथीर

सतगुरु शब्द पिछाण कै रे, छाडि छीलर तीर।

रामचरण दरियाव भजिये, राम गुणां गंभीर॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी रामचरण : जीवनी एवं कृतियों का अध्ययन ,
  • सिरजक : स्वामी रामचरण ,
  • संपादक : माधवप्रसाद पाण्डेय ,
  • प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ,
  • संस्करण : प्रथम