महर करो महाराज महर कर महल पधारो।
त्रिकुटी भवन में दास के संकट टारो।
धूप घृत मिष्ठान पाय प्रभु पाप निवारो।
जम्भ गुरु जगदीश संत के कारज सारो।
चोष लह्रा भक्ष भोज रस अचमन करो अघाय।
साहब ह्रदय संत के सदा रहो सुरराय॥