लागो जी म्हारो अलख पुरुष जी से नेह।

छोडूँ तो छूटे नहीं सजनी, बढ़ गयो प्रेम अछेह।

लागो जी म्हारो अलख पुरुष जी से नेह॥

शोवन शिखर की भँवर गुफा मंह, बैठो अधरासन धरेह।

लागो जी म्हारो अलख पुरुष जी से नेह॥

बिन बादल वहं चपला चमके, दमक दशों दिश लेह।

लागो जी म्हारो अलख पुरुष जी नेह॥

अतपा ताप तपे वो बाबो, गगन मंडल के गेह।

लागो जी म्हारो अलख पुरुष जी नेह॥

अरश परश दरश कर गुमने, सतगुरू चरन परेह।

लागो जी म्हारो अलख पुरुष जी नेह॥

स्रोत
  • पोथी : गुमान ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ठाकुर गुमानसिंह ,
  • संपादक : देव कोठारी ,
  • प्रकाशक : साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम