क्यों भटके बाहर को बन्दा, अन्दर खोल किंवारी को।

अन्दर खोल किंवारी को, तूं रूपजा दशमी द्वारी को॥

देखो धीवर जाल पसारे, पकरे मछली सारी को।

सनमुख आवे सो बचि जावे, जावे पावे जारी को॥

ज्यों मृग रोहन नीर निरखि के, दौरे प्यास बुझारी को।

दौरि दौरि वह दौरि मरत है, है वह नीर दिखारी को॥

नव दरवज्जा जोर जकर कै, तीन बंद दे त्यारी को।

मेरूदण्ड व्है चढ्यो मजल पै, शोच जोर लै शारी को।॥

पूनंम प्रात भांन जब ऊगे, चढ़ जा उलट अटारी को।

शोवन शिखर की भंवर गुफा में, घुस जा खोलअ बारी को॥

अधर तख्त पर बैठो आलम, नरखो वां गुल क्यारी को।

झगमग होत जोत बिन दीपक, मेटो भव दुख भारी को॥

गुरू को शीश नयाम गुमाना, मिले संत सुख्यारी को।

मोर तोर को मेट मले जा, पूरन अगम अपारी को॥

स्रोत
  • पोथी : गुमान ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ठाकुर गुमानसिंह ,
  • संपादक : देव कोठारी ,
  • प्रकाशक : साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम