दीयै तलै अंधेरा, ग्यान कथै बहुतेरा।

माया काजि दुनी परचावै, आपा परचै नांही।

औरां नै वै झूठ बतावै, आप अगति कुं जांही।

ग्यान कथै से ग्यानी कहीयै, ते अपनै मन झूठा।

हलति पलति हरि मेलो नांही, जां सुं सईयां झूठा।

लख एक तेग घड़ै लुहारा, तत ताव करि सांधै।

घड़ि घड़ाय अवरां नैं सूपै, आप एक नहीं बांधे।

सीकलि कर सीकली गर सूंपै, मल मोरिचा काढ़े।

उजली कर अवरां नै सूंपै, आप जर ही हांढे।

दूध दही अवरां ने पावै, आप जहर ही पीवै।

हाथ मसाल पड़े कूवै मां, कहि केसो किम जीवै॥

आदि अनादि युगादि को जोगी, लोहट घर अवतार लीयो हैं।

धन ही भाग बड़ो जिन हांसल कुं हर मात कहयौ हैं॥

होत उजास प्रकास भयो, रैन घटी जैसे भोर भयो हैं।

कोड़ द्वादस काज कै तांई, केसो दास भणै थल आय रहयो हैं॥

नारी आचार विचार करै, अली आंण निरमल नीर नुहावै।

घूंटी कै काज तकै कर मोहन, मोहन को मुख हाथ आवै॥

गाल नाक टिकै कर थोडी, गोविंद की गति नार पावै।

केसो दास उदास भयी महरी, धरणी धर पीठ लावै॥

स्रोत
  • पोथी : हिंदी संत परंपरा और संत केसो ,
  • सिरजक : संत केसोदास ,
  • संपादक : सुरेंद्र कुमार ,
  • प्रकाशक : आकाश पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स , गाजियाबाद – 201102 ,
  • संस्करण : प्रथम