कायर छोडी कामणी, विस्व कीयो विसवास।
पाप कीयो पुहंतो तुरंत, मेल्ही नार निरास।
जिण मेल्ही नार निरासो, अंतर पूगी नहीं आसो।
अहो नाह कीयो सोइ न्हासो, पिछलो नर नार विणासौ।
पीव मार कीयो थो बेली, जण मेल्ही नार अकेली।
हरजी असड़ी विधि बाणी, पिव मार पछै पछताणी।
गहली घर कीयो थो बाहर, ठिक बाझ नहीं जग ठाहर।
जाउं हूं जास दुवारै, मोहि लोग दुनी ठिठकारै।
पाप कीया पछताई, धरती धरा न काई॥
अबला ओ झंखै पड़ि, हलत पलत भवहार।
क्यूं जमवारो जावसी, हीयोह रोयो जद नार॥
पूर्व जन्म किण पुन्य की, तत खिण भई सहाय।
धरती खिण खामण कीयो विधि संजोग वणाय॥
नार हर रोयो जदि हीयौ, धरती खिण खामण कीयौ।
अहो अघ पाप मुचायौ, आभो जित उन्नण आयौ।
त्रीया सुं त्रिकम बूठो, उत मेह मया करि बूठौ।
नीर निवाण दिस आयौ, खामणियौ खरो छलायौ।
दूजो जल सोख समायो, निज नाडै नीर थंभायौ।
एक गौधे गउ चंपाइ रूलती रन मांहे आइ।
तलह विण रही तिसाई, निरख्यौ जल नाडै आई।
नारी अबस जस लीयौ, दुहे जीव मिले जल पीयौ।
बैस गऊ फुंकारी करहुं, तास घड़ी कटारी झड़हुं॥