सुरता सुणो विचारो, अलख तंणा आचारो।

हीयो मुख नांव करना, जां सेत वायस मुख बरना॥

सुरज कीरणा अन सीज सेज्या स्युं बात कहीज।

इल रिव मुखे ऊचारा, जांह जपीय नांव तुम्हारा॥

गोधे बीया गऊ बीयाव, तां तीरीया राज कहाव।

अपस बीना होय रसोई तीणी देस बस वीसनोई॥

ऊरबारे गंगा पारा, सांभले कासी केदारा।

पुंण छतीसुं वीसनोई, सुंण सबदी हुवा वीसनोई॥

करी मतो सुरां ते मां मीलीया, ते जात जगत गुर जुलीया।

जमाती जुगति डेरो, बसीयो आय बसेरो॥

हासम कासीम दोय भाई, दोनु दरजी पाति साई।

तीनके घर आगी राती, जाहां जमलौ कर जमाती॥

जमला करण रू चाई, सुण लोग सहर को आई।

संभल सतगुरु सुर बाणी, ताहां धरम दया मन आणी॥

स्रोत
  • पोथी : हिंदी संत परंपरा और संत केसो ,
  • सिरजक : संत केसोदास ,
  • संपादक : सुरेंद्र कुमार ,
  • प्रकाशक : आकाश पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स , गाजियाबाद – 201102 ,
  • संस्करण : प्रथम