कर मन सत सागर बास।
यो संसार विनास छीलर, देख होय उदास।
ज्ञान जल मुर्जाद मत दृढ़, थाग पावत नाहिं।
शब्द साखी सीप भरिया, राम मुक्ता माहिं।
समद सूभर सीप सूभर, चुगत हंसा दास।
आन दिशा को उड़त नांहीं, पाय परम निवास।
तीन विधि की ताप से, जग जलत छीलर तीर।
रामचरण जहां जाईये, जहां ब्रह्म सुख की सीर॥