कहा भयो जे टोडर पहरयो, कहा हुवों कुंडल छमकायै।
कहा भयौ झूंपरि मां बैठयौ,कहा भयो वह महल चिणायै।
कहा भयौ मिसटांन क भोजन, कहा भयो वन के फल पायै।
कहा भयो एकल दिन काट्या,कहा हुवौ परवार बढायै।
सोचि विचारि कहै जन केसो, छूटसि नांहि विना हरि ध्यायै॥
आदमी अगर चाहै किसा भी कपड़ा पहरौ,या आभूषणां रौ सिणगार करौ, चाहै झोंपड़ी में रहे, या महल माळिया में। काची- पाकी रोटी जिमण नै मिळै या मैवा मिसटान या बगिचै रा बनफल मिळै। परिवार में ऐकलो रहवै या अणूतौ मोटौ परिवार होवै। संसार रै आवागमण सूं छूटण सारूं तो हरि नै याद करणौ ही पड़सी।कथा विगतावली में कवि केसो जी जीव मात्र रै प्रति अहिंसा अर प्रेम री भावना व्यक्त करता थकां कैवै है कि