जिवड़ा जुगत जांणी रे,

मुक्त होवण री मन में मूरख, उगत आंणी रे॥

ओउम अथ अखिलेश्वर अविणासी, अज अगवाणी रे।

विश्वम्भर घट घट में व्यापक, वेद वखांणी रे॥

जिवड़ा जुगत जांणी रे,

मुक्त होवण री मन में मूरख, उगत आंणी रे॥

परमेश्वर री आज्ञा पूरण, नहीं पिछांणी रे।

पागलपण सूं फिर फिर पूजै, पाहण पांणी रे॥

जिवड़ा जुगत जांणी रे,

मुक्त होवण री मन में मूरख, उगत आंणी रे॥

भगळ भागवत पेट भरण री, कुटिळ कहांणी रे।

सत्यारथ सुणियां बिन सांप्रत, होसी हांणी रे॥

जिवड़ा जुगत जांणी रे,

मुक्त होवण री मन में मूरख, उगत आंणी रे॥

परधन हरण परायण पांमर, वंचक वांणी रे।

ते झूंठी बुगलां री बातां, नाहक तांणी रे॥

जिवड़ा जुगत जांणी रे,

मुक्त होवण री मन में मूरख, उगत आंणी रे॥

चार सम्प्रदा ठग चोरां री, छार छांणी रे।

ऊमरदांन ज्ञान बिन मर, अन्त उडांणी रे॥

जिवड़ा जुगत जांणी रे,

मुक्त होवण री मन में मूरख, उगत आंणी रे॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : तृतीय
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