जी रे वीरां ज्यारे मन में विरह नहीं हो जी।

ज्यारो धूड़ सो जीणों।

ज्यारे मन में विरह नहीं हो जी॥

जी रे बीरा ऊसर भेख सुहावणों हो जी।

गेरु सूं रंग लीनो, आप अगन में जळियो नहीं हो जी।

होय रयो मति हीणों॥

जी रे बीरा विरह सहित साधु होया हो जी।

जिका सिर धर दीनों,

मरणे सूं डरिया नहीं हो जी।

मग में मारग कीनों॥

जी रे बीरा विरह होय भारत लड़िया हो जी।

पाछा पग नहीं दीना,

मतवाला झूमे मद भरिया हो जी।

रंग भर प्याला पीणा॥

जी रे बीरा गुरु उगमसि साधु मिल्या हो जी।

जिका मन किया सीण,

बाई रूपा री बीनती हो जी।

परगट निज पद चीणा॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान संत शिरोमणि राणी रूपांदे और मल्लीनाथ ,
  • सिरजक : रूपांदे ,
  • संपादक : नाहरसिंह ,
  • प्रकाशक : राणी भटियाणी ट्रस्ट,जसोल, बाड़मेर