फकीरी असल फकीरी और।
असली छोड़ नकल कर बैठा, सब ही मन के चोर॥टेर॥
त्याग भाग लक्षणा लीना, ज्याँरे दिल बिच ऊगा भोर।
समझ सूँ समझ रमझ कर लीनी, दे डंके पर ठोर॥
ज्याँरी लहर जगत क्या जाने, मिले चोर सूँ चोर।
धर पाखण्ड दण्ड कई भाँति, जावे वां संग दौर॥
मन मुदड़ा मिल मस्त रहे वें, बाँने न परवा और।
चाहे बिगड़े और चाहे रहे जग, निरख लियो निज जोर॥
नाम संन्यस्त गृहस्थ सूँ बदतर, कर रह्या होडा होड।
अपनी अपनी खैंच खैंच कर, रह गये ज्यूँ त्यूँ मोड॥
त्याग ग्रहण उनके कछु नाँही, वाद विवाद न झौर।
अपनो स्वरूप परख लियो आप ही, जैसे चंद्र चकोर॥
वाचक ज्ञान बके बहुतेरा, उपनिषद् पर जोर।
अपनी आपकी सूझी नाँही, यों ही रहे निकोर॥