चाल सखी उण देश में, जहाँ अजब फागण होयजी।
पीव के संग खेल हरदम वहाँ न रोके कोय जी॥
मन का पड़दा दूर करले, गफलत में मत सोय जी।
खेल निज प्रीतम से होरी, सूरत सोहं पोयजी॥
मरुधर पति कहे मान प्यारी, मत विषय बिच रोय जी।
करना है तो अभी करले, पीछे बने नहीं कोयजी॥