हमारे गुरु बचनन की टेक।

आन धरम कूं नाहिं जानूं , जपू हरि हरि एक।

गुरु बिना नहिं पार उतरौ, करौ नाना भेख।

रमौ तीरथ बर्त राखौ, होहु पंडित सेख।

गुरु बिना नहिं ज्ञान दीपक, जाय ना अंधियार।

काम क्रोध मद लोभ माहीं, उरझिया संसार।

चरणदास गुरु दया करि कै, दियै मंतर कान।

सहजो घट परगास हूवा, गयौ सब अज्ञान।

स्रोत
  • पोथी : सहजोबाई की बाणी - सहज प्रकाश ,
  • सिरजक : सहजो बाई ,
  • प्रकाशक : बेलडियर प्रेस, प्रयाग ,
  • संस्करण : सातवां संस्करण