गुर दरसण परसे करै तन, अनंत कला करतार तणीं।

कसतुरी के कुसमन ही कलीया, घट परमल महकार घणीं।

सिरजी जिण सिष्ट संगति अंतर धर, अंबर भार अठार बणी।

समदा लग साख खंडा लग पारख, मुरधर मांड अवाज सुणी।

परवाण असो जाकै भांण दरसण, संभराथल सुभियान धणी॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान - संग्रह ग्रंथ (इंदव छंद) ,
  • सिरजक : गोकल जी ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण