फकीरी कायर सूँ कद होय।
सुगरा खेल इणी पर खेले, कायर देवे रोय।
इण शूली पर काँई तू सोवे, हम नहीं माने कोय।
निश्चय री शूली कलेजे पोवे, मरद जाणूं जद तोय।
काँई तू लकड़ जगावे गैला, क्यों दम अमोलख खोय।
जब तक ज्ञान अगन नहीं जागी, शिर कूटाई होय।
काँई तू साँकल कसे कमर में, दीवी बुद्धि ने खोय।
नित साँकल जो बन्धे म्हारे गज रे, वजन तोल मण दोय।
यूँ होयाँ नहीं मानों फकीरी, म्हाँने भोळा न जानो कोय।
सिंहा रा सुत सिंह ही होसी, खाल भेड़ां री खोय।
देवनाथ गुरु दीवी फकीरी, अब रेया बेफिकरी में सोय।
सूताँ पछे जागण री है सौगन्ध, मत बतळाओ मोय।
जगत बहके ज्यों मैं नहीं बहकूँ, सोच फिकर दिया खोय।
मानसिंह कहे मेरे घर आई जो, सुरत आप में पोय।