एक अचंभा अैसा देख्या, सोतत रे काहू बिरलै पेख्या॥ टेक॥
नाद ब्यंद थै रहै नियारा, सो पद परमत भया उजियारा।
त्रिकुटी मध्य ज्योति जे कहिये, ताहू थैं अगम अगोचर लहिये॥
त्रिबिधि थान त्रिदेव थैं रहिता, त्रिगुण अतीत निरंतर रमता।
जन पीपा सतगुरि बलिहारी, जाके सबदौं मिल्यों हो मुरारी॥