धूप लीजिये जलन धूप ले रूप समावो।

कृपा करो कर गहो हरि तुम हिरदे आवो।

वासुदेव विष्वेश विश्वधर ब्रह्मा रहवो।

ह्रदय ध्वांत कूं हरि ज्ञान उद्योत करोवो।

ज्ञान अग्न जोग अग्न जठराग्न प्रचण्ड।

साहब ससितारा तड़ित तुंही तरुन मार्तण्ड॥

स्रोत
  • पोथी : जम्भसार, भाग-1-2 ,
  • सिरजक : साहबराम राहड़ ,
  • संपादक : स्वामी कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : स्वामी आत्मप्रकाश 'जिज्ञासु', श्री जगद्गुरु जंभेश्वर संस्कृत विद्यालय, मुकाम,तहसील-नोखा, जिला- बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम