देव भ्रमतौ भ्रमतौ तेरै सरनै आयौ।

सरणाई बिजै पंजर, सखि रामइया वाई॥टेक॥

लोह कौ साँकल कैसे तूटै हो घण दै धाइ।

मोहकौ साँकल कैसे तूटै हो रामइया राई।

देखी विद्या देख्यौ दान, देखी काया कृतम तंन।

साधु संगति बिन मेरौ कहीं मानै मंन।

देख्यौ पुंनर देख्यौ पाप, संकल जग देख्या संताप।

प्रणवत पीपौ नरहरि, उद्यमी लै आयै आप॥

स्रोत
  • पोथी : राजर्षि संत पीपाजी ,
  • सिरजक : संत पीपाजी ,
  • संपादक : ललित शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम