देसड़ लौं बिड़ाणौ रे जीवड़ा, पाहुणों दिन चारि।
सीख हमारी मानि लै, हरिभज जनम सुधारि॥टेक॥
हाथी घोड़ा गाँव गढ़ डूंगर, सत द्वारे धन धाम।
थामैं जिवड़ौ घालि कैं, तैं भज्यों न राजा राम।
मुलमुल कागा पहन तो, चलतो घुड़लां री जोड़ी।
अंतकाल जम आय पहुँचो, राख्यों तिणा ज्यूं तोड़ी।
सुबुधि बुहारि हाथिलै, कुबधि जोड़ो झारी।
पीपो कहै म्हारी आतमां, तू राम रतन उर धारी॥