चेत चेत मन अंधा, भज ले नागर नंदा
सुमरण साम लीया नुं करतां, कट जाये यम फंदा भज ले चेत
पुरण ब्रह्म परम कृपाल हे, करूणा सागर सिंधु
अधम उधारण अघ नीवारण, तारण भवजल सिंधु भज ले चेत
कइ जुग बीते विषय रस पीते, अजहु न मुढं अघायो
भव सें भटके, उंधे मुख लटके, फिर जनम्यो फिर जायो भज ले...
प्राणी पडीयो नरक नी खानी, चीडानुं चुंटी खायो
हरी भज मेटो, स्तुती कर छुटो, उदर न कयुं बिसरायो भज ले...
वाहिर आयो, भजन भूलायो, माया में मुरजानो
वालापन में खाया खेल्यो, पर हाथ पर बेठानो भज ले...
जो आंनी में रातो मातो, विषय रंग में भीनो
मोह मदीरा, पीत अधीरा, मुरख मत को हीनो भजले चेत..
त्रीस चाली से बरसे न चेत्यो, पापी पइसो जोडे
कुंटुब कबीलो, विषय में पडीयो, अधीक नेह कुं जोडे भज ले..
आइ साठी बुद्धि सब नाठी, लाठी ग्रहवा लाग्यो
करूप काया, बल घटाया, परमारथ नहीं जाग्यो भज ले..
श्रवणे न बुझे नयणे न सुझे नासिका झरने लागी
कुटंब कहे कब, टरे मरे कब, तोये न चेत्यो अभागी भजले..
यम आ वलगा, सब भये अलगा, मारन लागे प्रहार
तब पछतावे सी धुणावे, अगणित दुःख अपार भजले चेत..
ना दीया दान, न कीया सनमान, कहो केसे आवे आडी
हरी नहीं पुज्या, गुरू नहीं बुझ्या, पडयो चोरासी खाड़ी भजले..
दास गवरी कहे सीव परदेसी पूरण परमानंदा
मन, क्रम, वचने, साचे दल चलने, कटीया यम का फंदा भजले