चाल सखी उण देश में, जहाँ अजब फागण होयजी।

पीव के संग खेल हरदम वहाँ रोके कोय जी॥

मन का पड़दा दूर करले, गफलत में मत सोय जी।

खेल निज प्रीतम से होरी, सूरत सोहं पोयजी॥

मरुधर पति कहे मान प्यारी, मत विषय बिच रोय जी।

करना है तो अभी करले, पीछे बने नहीं कोयजी॥

स्रोत
  • पोथी : मान पद्य संग्रह ,
  • सिरजक : राजा मानसिंह ,
  • संपादक : रामगोपाल मोहता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : 6
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