भजीये भगवंत अनंत उधारण, कारज सारण किरतारौ।

चरणे चितलाइ चितारी चत्रभुज, सिवर दुनी पतित तारौ।

दुख दालद भांजण आप निरंजन, आदि पुरष ओंकारौ।

ओलखीयो अलख अयोनी सिंभु, कर जोड़े प्रणाम करो।

आकार करन खट बरण निवाजण, भगत उधारण भाव कीयौ।

सोइ जग तारण झांभेसर जुग में, आइ चक अवतार लीयो॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान - संग्रह ग्रंथ (इंदव छंद से उद्धृत) ,
  • सिरजक : गोकल जी ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण