भजन बिना, मिथ्या जनम गमावे

संसार धुआ जेसा धवला, हाथ कछु नहीं आवे भजन...

मृगतृष्णा वे सरोवर भरीया, दुर सें नीर दरसावे

नजीक गये जब, प्यास जावे, उलटा प्रान गमावे भजन..

जैसे श्रवान हे हाड कुं चूसता, जीम्या इंद्री कुं वडाने

आपको लोही आप कुं रवावे, मुरख मन नहीं पावे भजन...

सुपन में निरधन धन पायो, जाग्यो तो तंभी जावे

गवरी कहे भज ले गोविंद कुं, याते परम पद पावे भजन...

स्रोत
  • पोथी : गवरी बाई (भारतीय साहित्य रा निरमाता) ,
  • सिरजक : गवरी बाई ,
  • संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम