भाई रे श्रुति सुंमृति जन दाखै।

सकल कल्याण जु होत सुमारग,चलत तंत्र सब भाखै।

प्रथम इहै गुरुदेव दंडवत,जीव दया उर धरिए।

भूलि पर कौं कहा आपनौं, प्राण घात नहीं करिए।

परधन कौडी आधी कोरि लौं, हरे वंछा माहीं।

तृष्णा रूप प्रवाह रोकि कै, सुस्थिर भरमें नाहीं।

वनिता बात सुनै नहीं धारै, कहै संगति करई।

जा करतूति कलंक लगै तन, सो करनी प्रहरी।

समयो समझै सक्ति अपनी,दान देखिकै देवै।

वानी विद्या जल दल आसन, बहुत विधि आतम सेवै।

जब बोलैं तब सब्द सरोतर, साच सबनि को भावै।

कारज सुभ परमारथ बिन कहुं, उमंगि सनमुखी धावै।

यहु करतबता करनी सब कौं, मनख देह धरि जेतै।

करत चलत जगन्नाथ सुपथ इहि, उधरे उधरैं केते॥

स्रोत
  • पोथी : गुणगंजनामा ,
  • सिरजक : जगन्नाथदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : श्री दादू साहित्य- शोध – संस्थान ,
  • संस्करण : प्रथम