अंग आतस ठांभण अस तन ही विधि जाणी, विचखण भेद घंणा।

जाकै सांस मास रगत रूयो, ऐकार अलख तंणा।

देवा अति देव सुरां पति सामी,रसना रटा रह मांण भणां।

जाकै तात मात बहण साजन,भरम चुकावण भय हरणौ।

सरणो गुर साम्य सदा सारंग धरि,पिरथी पति धर उधरणौ॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान - संग्रह ग्रंथ (इंदव छंद से उद्धृत पद) ,
  • सिरजक : गोकल जी ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण