...अजहु चेते तो भला रे मन, मायाये सब जुग छल्या रे

लख चोरासी भटकत् मानव देह छे मल्या रे.....

मेरी, मेरी कर जनम गमाया, काल अजगरे गल्या रे

ओर उपाय करो जीव कोउ हरी बिन दुःख नहीं टल्या रे

मोह मदीरा पीके छक्यो रे, विषय पंक में कल्या रे

त्रष्ना जल सरीता में पर्यो रे, सुख सपने नहीं मल्या रे

भुरकी नांखी सब पर माया, रूप देखी ने रल्या रे

दास गवरी कहे चेत बडभागी, प्रभु ने भज्या सो तर्या रे

स्रोत
  • पोथी : गवरी बाई (भारतीय साहित्य रा निरमाता) ,
  • सिरजक : गवरी बाई ,
  • संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम