आनंद बधावो बाजै, आतम केवल रांम बिराजै।

अगर चंदन आंगणो लिपाऊँ, मोतियन चौक पुराऊँ॥

प्रेम कलस सिर ऊपरि धारों, हरि आया सामंही पधारों।

पांच सहेली मंगल गावो, तन-मन वारि-वारि दरसन पावो॥

गोवल गुडी भयो उछाह, नारि नेह घरि आवो नाह।

आज म्हारै बस्ती, आज म्हारै वासा, कहै बखनो हरि पुरवी आसा॥

स्रोत
  • पोथी : बखना जी की बाणी ,
  • सिरजक : बखना ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : श्री लक्ष्मीराम ट्रस्ट, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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