ऊंचा बोह असमाण थी पायाळ थी ऊंडा।
जम्मी थी चौड़ा अधक मेर हि थी वड्डा॥
पाणी ही थी पातळा परमाण पचडा।
धूवैं ही थी झीवणा कुछ प्राण पिंडा॥
बाकी हळवा वाव थी बहळा बळविंडा।
हद ही थी बेहद अपार रोम रोमां ब्रहमंडा॥
थावर जंगम सुखम थूळ छीदा भी जड्डा।
लंबा पहुळा भी अलाह ऊंभा भी अड्डा॥
जोगी आद जुगाद दा दीहां दा डड्डा।
दुस्तर भव सागर समंद तत नांव तिरड्डा॥
जामण मरण निमंधिया दोऊं जम दंडा।
माया काया मंडिया परपंच प्रखंडा॥
त्रबिध संसार उपाविया कोळाळी भंडा।
जाणि लगाई गोड़िये बाड़ी बनखंडा॥
निरगुण थी सरगुण हुवा क्या जाणै रंडा।
निरगुण सरगुण गुण अतीत गुण हंदा गड्डा॥
जीव करम्मै बंधिया निरबंध निमंडा।
फिरियंदा फुरमाण दा रहिमाण तुसंडा॥
अलख अदल्ली पातिसाह कुण तुझ हूं वड्डा॥