भग्ग न लिंगन पुरख नार अंग न आकारा।
मुक्ख न मुंड न प्राण पैर बेहद्द बिथारा॥
करण नयण न नासिका बप सुन्नि बिचारा।
पिंड न प्राण न बाणि खाणि इन्द्री न उदारा॥
न्यात न जात न मात तात निरकुळ निरधारा।
रत्त न पीत न स्वेत स्याम अबरण ऊँ कारा॥
ना जाडा ना पातळा हळवा अन भारा।
नहिं छोटा नहिं मोटड़ा निरगुण निरकारा॥
नंह भारी हळवा नहीं कंवला न करारा।
नां कड़वा न कसायला मीठा नंह खारा॥
नां तत्ता ना सीयळा ऊंडा उपगारा।
नां बाहर नां भीतरै अणभै ततसारा॥
नां अळघा नां नेयड़ा सच हंदा प्यारा।
नां बैठा नांही खड़ा हाजिर हुसियारा॥
नां भरिया नां सोखणा अक्खै ज भंडारा।
नां बाळा नां तरुण ब्रद्ध परण्यां न कंवारा॥
नां धाया नां भूखिया संसार अधारा।
माया छाया पाप पुण्य नहिं जीत्या हारा॥
आवै जाय न सुक्ख दुक्ख थित्ति न घरबारा।
सुन्नि न थूळ न मूळ सखी क्रपण न दातारा॥
किण देख्या किसकूं मिळ्या कैसा करतारा।
रूप न रेख अलेख कै कुछ वार न पारा॥