म्हांको देस भारतवर्ष घणो पराणो देस। जद भूमण्डल पै लोग जंगळी जनावरां की नांईं रै छा, वांई कोई तरां को ग्यान नै छो ‘सभ्यता अर संस्कृति कांई होवै छै’ या बात बी वै नै जाणै छा। ऊं बगतां यो’ई अेक देस छो जींनै ग्यान का सूरज को परगास कर्‌यो अर भूमंडल में उजाळो फैलायो भौतिक अर आध्यात्मिक दोन्यूं को ग्यान ईं देस नै दुनियां द्‌यो। भारत का ऋषि-मुनि नरलोभी अर सात्विक छा, ज्यांनै संसार की भलाई कै लेखै घणी खोज करी, जो आज बी आपणो सत्त राखै छै अर सच्चाई को उजास बांटै छै।

यो देस छै जीनै संसार ईं प्रजातंत्र अर गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली को मूल बच्यार द्‌यो। ईसा सूं कई सौ बरसां फैली ईं भारत का उत्तरापथ में विकसित गणतंत्रात्मक राजप्रणाली सूं शासन चालै छा। प्रागैतिहासिक काळ सूं यहां गणतंत्र की मैजूदगी का सबूत मलै छै। महाभारत-काल, बौद्धकाल अर सिकन्दर का हमला का काल में यहां गणतंत्र शासन-व्यवस्था री छै, इतिहास ईं को सागसी छै।

यूं तो यूरोप का विद्वान् अर अंग्रेजी भासा का माध्यम सूं पढ्या-गुण्यां भारतीय बी या खैता मल्या छै कै भारत नै गणतंत्र को ग्यान यूरोप सूं सीख्यो छै, क्यूंकै यूरोप को यूनान प्रदेश, गणराज को बच्यार देबाहाळो संसार को अव्वल देस छै।

पण ईं बात में अतनी सच्चाई छै जतनी ईमें कै अेक बांझ का बेटा नै समन्दर को सारो पाणी तीन चल्लू में पील्यो। सांची तो या छै कै गणतन्त्र राज की धारणा की सरुवात म्हांका आपणा देस भारत में होई छै। अर या धारणा अतनी गहरी अर पवित्र मानी छै कै गणराज्य का गणपति कै तांईं देवता को रूप में ईं थरप द्‌यो। गणपति या गणेसजी की आज भी हिन्दू धरम का लोग पूजा करै छै। वै कुण छै? गणराज्य का फैला नागरिक का प्रतीक तो छै ज्यांकी पूजा हर मंगळ-कारण सरू करबा कै पैल्यां करी जावै छै जींको सीदो मतलब छै, राज की जनता का सबी कामकाज गणपती सूं सलाह करा’र वांकी मौजूदगी में करबा की परम्परा छी।

प्राचीन गणराज्यान को क्षेत्रफल थोड़ो रै छो (अेक, दो या च्यार जनपद) ईं छोटा आकार कै कारणै लोग अेक दूसरां ईं भली-भांत जाणबो करै छा। ईंसू चरित्रवान, समझदार लायक गणपती को निर्वाचन बना बिघन-बाधा कै हो जाबो करै छै।

प्राचीन गणराज में गणपति को निर्वाचन

आज बी भारत में गणेस-चोथ को दन गणेस-पूजा को दिन मान्यो जावै छै। घणी उमंग अर उछाव सूं गणपती की मूरत थरपी जावै छै अर पूजा बी करी जावै छै।

दिन का फैला फैर में बाळक घरां-घरां जावै’र डंडा जोड़ै है। या परंपरा पराणा गणतन्त्र राज की बगत सूं चालती आई छै।

थोड़ो बच्यार करबा की बात छै या परम्परा क्यूं चाली? ईंको काईं मतलब छो?

म्हारो बच्यार छै कै यो दिन गणेस चोथ-गणतन्त्र में गणपती का निर्वाचन को दिन होबो करै छो तड़का हूं गांव अर सैअरां में पढ़वा हाळा बाळक गुरुजी की अगुवाई में घरां-घरां जा’र डंडा जोड़’र या सूचना पुगावै छा कै आज गणपती को निर्वाचन करणो छै। ईं की लार-की-लार अेक बात और यां डंडा जोड़ण्यान का रंगा सूं या बात बी सब जाण लै छा कै ये डंडा बजा’र कुण कै कारणै प्रचार कर र्‌या छै। ऊं समै उम्मीदवारां को न्याळो-न्याळो रंग निश्चित कर्‌यो जावै छो।

चुणाव में मतदान चोगान में होबो करै छो। न्याळा-न्याळा रंग की सीकां (शलाकाएं) बराबर-बराबर गणती में जमा’र धरदी जावै छी। मतदाता आपणी पसन्द का उम्मीदवारां का रंग की अेक-अेक सीक उठा ले छा। सारा मतदान कै नमट्यां पाछै हर रंग की सींक की गणती कर’र नतीजो घोषित कर्‌यो जावै छो।

गणपती कुण हो सकै छो?

गणेस जी की वन्दना में गाया जाबा हाळा भजनान पै बच्यार करबा सूं या बात जाणी जावै छै—

गणेस जी को आकार हाथी को या बतावै छै कै गणपती हाथी जस्यो सगतीवान होणो छावै छै (भारत में सगती की गणना हाथी का बळ सूं की जावै छी, जस्यां आजकाळ अश्वशक्ति सूं।)

गणेश वन्दना सूं बी गणेसजी में गण्याजाबा हाळा गुणा को पतो लागै छै

मोदक प्रिय मुद मंगळ दाता,

विद्‌या वारिधि बुद्धि विधाता।’

को प्रत्येक सबद गणपती की योग्यता बताबा हाळो छै। मोदक (लड्डू) प्रिय-मोदक सूं खुस रैबा हाळो, पण ऊंई तो मोदक जद मलैगा, जद जनता देगी। अर जनता देगी कद? जद ऊंकै पास होवै। ईंको स्याफ मतलब छै कै राज में भौतिक सुख-समृद्धि लाबा हाळो गण गणपती बणाबा कै काबल छै।

‘मुद मंगलदाता’—सदा मुद (खुस) रैबा-हाळो अर सबको मंगल करबा हाळो होणी छायजे।

‘विद्‌या वारिधि’— विद्‌यावान अस्यो होणो छावै, जस्यां-विद्‌या को सागर।

‘बुद्धि बिधाता’—विद्‌यावान की लार-की लार बुद्धि में सबसूं अगावतो; जाणै बुद्धि को बधाता जस्यो होणो छावै।

आज का पढ्या-लिख्या अर दूजा धरम का लोग गणेसजी की मूरत देख-देख’र म्हांकी मजाक उडावै छै अर खै छै अतना बडा डील डौल को गणेस अर वांकी असवारी ऊंदरो (चूहो छोटो सो अेक जीव)। पण खैबा हाळां की बुद्धि घणी मोटी छै, समझ की कमी छै जे वांनै ग्यान होवै तो जाणै कै हाथी अर ऊंदरा का डीळां की थरपणा अेक प्रतीक छै। गणेसजी का वाहन का रूप में अेक ऊंदरा की कल्पना करबाहाळा, साधु-महात्मा-विद्वांनां नै या बतायो छै कै गणपती नै राज करबा में घणा सावचेत हो’र राज की हालत जाणबा की कोसीस करणी छायजे। आपण राज में अेक-अेक घर की सांची हालत की जाणकारी मलबू करै। ईं वास्तै अस्या दूत राखणा छै, जस्यां ऊंदरा, जे हर घर का चूल्हा अर चोका तांईं पूग सकै।

पद करबा को सम्यो

चुनाव कै पाछै दसवारा (विद्‌यादशमी) कै दिन नुवा गणपती को अभिषेक होवै छै अर ऊं दिन नुवो गणपती, राज की फोज की सलामी लेब करै छो, क्यूंकै सेना को सबसूं ऊंचो अधिकारी गणपती होबू करै छो।

अभिषेक कै पाछै शासन का सगळा विभागां नै समझदारी सूं धीरां-धीरां सारा सूत्र आपणां हाथां में ल्यां पाछै द्वाळीपै देस की आर्थिक हालातां की जाणकारी लेबा की परम्परा छी। म्हारो अस्यो बच्यार छै कै दीपावळी गणपरिषद की बैठक में साल भर की आमदनी-खर्चा को ब्योरो गणपतीजी कै द्वारा गणपरिषद कै सामै धर्‌यो जावै छो, जींनै गणपरिषद जांच कै ज़रूरत कै माफ़क मंजूर, करै छी।

भांत देस का गणतंत्रां की परम्परा जुगां तांईं चालती री। अन्त में सिकन्दर का हमला अर चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य का बणबा सूं परम्परा को लोप-सो होतो जाण पड़ै छै। फेरूं भी गुप्तकाळ तांई यां पराणा गणतन्त्र की मोजूदगी का सबूत मलै छै।

स्रोत
  • पोथी : हाड़ौती अंचल को राजस्थानी गद्य ,
  • सिरजक : गौरीशंकर ‘कमलेश’ ,
  • संपादक : कन्हैयालाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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