हथाई-बराबरिया लोगां में मन री बात, थ्हारी-म्हारी, ईनली-बिनली करण रो मंच है जिण मांय कीं घर-बीती अर कीं पर-बीती हुवै पण हथाई कोरी चिगळ बाढणी कोयनी। हथाई में तुर मुर देखतो फूसो, आडे कोइये झाकतो सत्तू, इकलार बोलतो खेमो अर बातां छमकतो रूघो है। हाथ रा हलकारा, मुंडै में बिलोइजतो थूक, माथै पर मण्डेड़ी लकीरां, गुद्दी में आंवती खाज, मानखै री जाळा, रिपियां रो टोटो अर ब्याऊ फाटेड़ी पगथळ्यां स्सो कीं है हथाई में। हथाई में खथावळ कोयनी, हथाई तो अेक धार बेंवती रेवै। हथाई में घणो खरचो कोनी। सापां रै ब्याव में फकत जीभां री लपालप। चावड़ी रो गुटको, होकै री गुड़गुड़, सुलफड़ी-चिलम रो धूंवो अर बाळेड़ी बीड़ी रो कस हुवै।

हथाई में भावां अर बिचारां री क्रमिकता है। जुड़ी बगै बात। अेक बोल’र ठम्मै, दूजो त्यार। तीजो उडीकतो रैवै, चौथो सोचबो करै। हथाई में बातां पर बातां ऊकलै, बातां सू बातां नीकळै, बात री बात न्यारी। जुड़ाव अर जुड़ण री तकड़ी अटकळ हुवै हथाई में। हथाई अै’री-बेहरी दर नांव कोनी। सीधी अर सभड़क। औल्हा अर लुकाव-छिपाव कोनी। ऊकलै सो नीकळैं। भासा री इकसारी हथाई में ऊंच-नीच रो भेद कोनी घालै। हथाई आपसरी री बंतळ अर गुरबत है।

जेठ रै महीनें में आभै कानी डोभा फाड़तो किरसाण जोड़ायत रै कन्नै बैठ’र चाय री कोली खाली करै-हथाई जोड़ै। सावण-भादवै में मेह री चालती रेळमपेळ अर बादळां रा लोर-झूंपड़ी में जीमतो मोट्यार हथाई करै लुगाई सागै। पौ-माघ रै टंटार में बोदकी ऊण्डी साळ में चिमनी रै च्यानणै बैठ्या घर रा सगळा हथाई करै। हरेक रूत अर मौसम री हथाई। रसोई में चूल्है री बेवणी रै चिप’र बैठ्या टाबर ठण्डी-ठारी नै भारणी बोल’र टिपावै। बनड़ा अर धेनड़िया गावण आयोड़ी लुगाया-पतायां गीत गायां पछै हथाई रा ठरका देवै, बातां छमकै। हथाई री ‘बांवण्डरी’ में सगळो कीं कैद! धान-पात, सासू- नणद, टाबर-टिक्कर, अड़ौस-पड़ौस, घरकी-पारकी, लड़ाई झगड़ा साच्चाणी स्सो कीं। पौ, माघ रै रठ में खेसलै-कांमळियै सूं जड़ाजन्त बूढिया हथाई खातर धूंई रो आसरो लेवै। हथाई में मन नै खुल्लण रो मौको मिलै, आदमी बन्ध्यों नी मरै, क्यूंके हथाई में अेक सी उमर अर अेक सी अबखायां-जाळा, चिंता रा अेक सा मुद्दा हुवै। हथाई में सामलै आदमी रो मूंडो दीखणो जरूरी, नींतर बात रो सुवाद कोनी बापरै। जदै बूढा-बडेरा सभड़क चांच सूं चांच मिला’र हथाई जोड़ै। मुंडो दिखण में कोई विघन-भिजोग बापरै तो बुढिया लाल-पीळा हुंवतां जेज कोनी लगावै। इण खातर आज री टेम में इंटरनेट पर स्सौ कीं व्है सकै पण हथाई नीं। हथाई में आम्ही-साम्ही बैठ्यां बिना कस कोनी बैठे।

हथाई करणियां अर हथाई में भाग लेवणियाँ छः-सात सूं घणा नहीं होवणा चाहिजै। घणा जणा भेळा हुंवतां कांगारोळ मच सकै। कुण-कुण किण-किणरी बात सुणै? हथाई रो जायको बिगड़ जावै, चासणी खतम हुय सकै। इण खातर हथाई अेक छोटो-नान्हो गठजोड़ हुवै जिणमें सगळा-सगळां नै जाणै-समझै। हथाई करणियां बाप-दादा, घर-खेत री सींवा अर भाव-सुभाव सगळी चीजां एक दूजै री जाणै। आपसी में झीणो सो’क पड़दो कोयनी। हथाई रा मुद्दा अर विसै पेलां सूं तै नी व्है पण गौर सूं देख्यां ईंया लागै जाणै जचबन्द अर जुड़ती-रळती बगै हथाई। कैवण रो मतलब हथाई रै हजार हाथ हुवै। हथाई घर सूं चला’र भच्च खेत पूगे, खेत सूं चाल’र मऊ जावै, अेरिए जावै। हथाई जोहड़ै पर अेवड़ पाय’र रोही कानी टुर व्हीर हुवै, हथाई भींटका ल्यावै, पालो बाढै, सुवार करवावै, अणभांवतो जीमै अर आंगळ्यां घाल-घाल’र उळटै-ऊबाकै। हथाई खतळाई में गुटमिंगणी खेलै, सासरै जावै, ओठारूवां नै काढा देवै। हथाई कठै-कठै को जावैनी? हथाई रूळती-हांडती कोनी फिरै-घुमाई करै हथाई।

हथाई रो चरितर ‘सेकुलर’ हुवै। हथाई रै मांय अेक धरम, अेक पंथ अर अेक देई-देवता सूं फकत जुड़ाव कोनी। इण में तो सौकत रो खुदा, कोरसिंह रा वाहे गुरूजी अर रेंवतै रा रामजी सगळा सागै खेलै-बंतळ करै। हथाई रै मांय जात अर धरम रो भेद कोयनी। हथाई में अेक आदमी री अकड़ अर कळ्ड कोनी चालै, सगळां रो साथ-संग चालै। सगळां री भागीदारी अर भावना हथाई नै आगै बधावै। कोई जरूरी कोनी हथाईवाळा मिनख अेक आस्था अर विस्वास सूं जुड़ियोड़ा हुवै।

चुणांव में सीयाळै री रूत में ‘धूंई’ उपरांकर हथाई करणिया लमूटेड़ा रैवै। धूंई में थोड़ी-थोड़ी लकड़ी घोचो घालता बगो हथाई करता बगो भलांई। धूंई में चूल्हे दांई गुलामी कोनी- बेवणी, छनेड़ी अर साईडांवाळी पछींत कोनी। चूल्है बा’रकर नारी जनित मरजादा अर बडै-छोटै रै आव आदर रो तकड़ो आवरण व्है इण खातर चूल्हो अभिव्यक्ति रै लिहाज सूं गुलामी रो भार ढोवै। धूंई आजाद हुवै इण खातर धूंई री हथाई भी आजाद हुवै। गोळ-गोळ जीमणवाळा सा बैठ्या धूंई उपरांकर मिनख गड़ाछा मारै। बस जीमण में अर धूंई उपरांकर बैठण री गत में अेक ही फरक है— जीमण में पलाथी मार’र बैठीजै पण धूंई में फणा ताण। धूंई हथाई रो बो अड्डो हुवै जिण मांय आठ-दस घण्टा हथाई चालणी आम बात है, पात्र बदळता रैवै। हथाई लगोलग चालबो करै। आदमी आंवता-जांवता रैवै। जिण किणी रै काम हुवै तो दस-पांच मिंट मुंडो मार’र निकळ सकै, धूंई पर अेतराज कोयनी। धूंई पर दोय जावै, पांच आवै। धूंई री सरूआत में हबड़ोट जगाइजै जणा खड़्या-खड़्या तपै अर हथाई करीजै। धूंई री हथाई में केई दोजख भी है। धूंई में अेक सिल्ही चिरमली खारो अर हळको-हळको धूंवो काढती रैवै जकी आंख्या में पाणी रा चौसरा चलाबो करै-लोग ओग रै लाळच सूं भेळा बैठ्या रेवै। धूंई री हथाई में च्यार-पांच जणा मावै, घणा मिनख हुयां दूजी धूंई जगावणी पड़ै। इण खातर हथाई री न्यारी छिब लाधै धूंई पर।

हथाई प्राकृतिक अर नैसर्गिक हुवै, इण मांय ‘आर्टीफिशियलिटी’ जाबक ही कोनी चालै। भासा काळजै सूं नीकळैड़ी। भावां में दिमाग कम अर दिल ज्यादा। घांईघूंचळी दर नांव कोनी, आडीया-टेढ़िया पेच कोनी चालै। बात रा छूंतका कोनी उतारीजै। मन री चिल्डघाण नै जग्यां कोनी हथाई में। बात कोरी-मोरी बात हुवै। फकत भासा रो लगावण अर कैवण रो आंटो जरूर हुवै पण बात बेतासील्ही कोनी चालै। बात रा टप्पा हुवै दो। घणा ऊतार-चढ़ाव कोनी, भासा रो फरजी खोळ कोनी। मिनख री कैवणगत अर विचार रो सांगोपांग रळाव हुवै हथाई में। हथाई में दुनियावी ओर-पचोळो खींडाव नी व्है। दुनियादारी आपरै हिसाब सूं चालै अर हथाई आपरै हिसाब सूं। हथाई में मसीन रो प्रवेस कोनी। हथाई देसज अर लौकिक हुवै। हथाई में ऊँट रै ढुगरै पर घाव, पगथळी रै लागती जूत्यां, धूंवै सूं काळी हुयोड़ी देगच्यां, ढीली नीवार रो कोथळी सो मांचो, कचळती ईंट्यां काढ़तो मजूर, फळूंसी री झाल अर तंगळी, गाडै री भण्डारी, लावणी में जी लकोवता मिनख, काळ-दुकाळ में काळ तोड़ता कतारिया, घास रै कांटां सूं लप्पू हूयोड़ो घाघरो, सिट्टी तोड़ता मोट्यार, रावणहत्थो बजावंतो भोपो है। कठैई सफाई, फूटराप, आधुनिकता कोनी, असवाड़ै पसवाड़ै रा देसज पात्र अर विसै हुवै।

राजनीति सूं ल्याड़ीजैड़ा पाटां पर हथाई री न्यारी रंगत व्है। वार्ड पंची सूं लेय’र कसमीर दिल्ली रा सगळा मुद्दा। छीदै-पतळै अर काम धिकाऊ ग्यान रै बूतै पाटां पर हथाई चालै। देस री अबखायां अर गरीबी-माँदगी नै नीं बदळ सकण री मजबूरी। घरै पाणी रो तोड़ो, बीमार अस्पताळां रो राण्डीरोवणो, इस्कूलां में फोकट री तिणखा लेवतां मास्टर- सगळै मसलां पर हथाई जाड़ भींचावै। ‘जी में तो आवै सोट री मार’र ओटाळ नाखद्यूं पण सोचां लोग के कैयसी’। पाटां री हथाई में छमको, तड़‌को अर जावण है। जात-पांत री सीख अर पीड है। पाटां री हथाई में चूंठिया, चिड़बोथिया अर बेसरमी रा हळका-पतळा त्यामणा उडै।

लुगायां री हथाई खुसर-पुसर सूं लैय’र टिचकारी तांई पूगै।’ राम-राम! देखो- देखो! कै बगत आयग्यो’ - री व्यजंना। आदर्स री चिकोरी छोड़ती घटणा पर लुगायां हथाई में घणी मुखर हुवै। काम नै बगतसर सळटावण री मजबूरी भी हुवै लुगायां री हथाई में।’ बेगी सीक जाऊं अे बाई! घरै टाबर कूकता लाधसी, हा’रै में खीचड़ो सीझतो छोड़’र आई, अबार ख्यालियै रा बापू आजी, रोटी-टुकड़ो करणो बाकी पड़्यो है, पोटा-मींगणा कोई दूजी आय’र थोड़े करसी’ - जैड़ी कमजोरी अर रोवणो लुगायां री हथायां मे आम बात है। लुगायां-पतायां री हथायां टेम री कमी बताय’र लम्बे टेम तांई करीजणवाळी हुवै। आधी-पूण घण्टा हथाई खातर लुगायां बेंवतीं ही काढ ल्यै क्यूंकै लुगायां में हथाई रो रस अर चाव, कम मौको मिलण रै कारण कीं ज्यादा है। मिंदर री फेरयां, काचर छोलती बगत, टाबरां रै मूत रा गूदड़ा सुखांवती वेळा लुगायां हथायां रा आच्छा-माड़ा भचीड़ दे ही ल्यै।

हथाई गुरबत रो अबोट अर मौलिक रूप है जिण मांय भोळो पणो, सूधोपणो अर मिनख रो अणदोसी सुभाव सामनै आवै। हथाई री परम्परा जाबक लुखी ही कोनी पण अणूंतो चीकणास अर लपलपाटिया भी कोयनी। हथाई में सगळा ही श्रोता अर सगळा ही वक्ता हुवै। बराबरी रो दरजो हुवै, सगळा नैं आंगी-खांगी अर अेढी-टेढी चाल कोनी। हाँ, मन रळै जठै हथाई जुड़ै। उमर रा बरस पर बरस बीतता गया पण कदैई गौर कर’र सावळ देखी ही कोयनी हथाई नै। साच्यांणी हथाई लूंठी अर जबरी चीज है- खोज है। बिना खरचै मन रो मैल धुप्पै।

पण हथाई अर ग्होयी में खासो फरक हुवै। ग्होयी में जठै हळकी पतळी बातां, सूत्रै काम री लापरवाह खेचळ अर अेहरा-बेहरा विचार व्है बठै हथाई सभड़क अर लाग लपेट सूं दूर। ग्होयी में सार कोनी नीकळै। ऊँधी-पाधरी अर उडार बातां। छोर-छण्डां अर नासमझां रो काम हुवै ग्होयी पण हथाई स्याणप मांगै। हथाई खुद री गवेषणा अर निजू चिंतण है पण ग्होयी में अनुभव री बा गैराई नीं दिखै। हथाई रो घुमाव ठाडो अर डूंगो है पण ग्होयी पाइप में बगतै पाणी आगला हळका फूसका है।

स्रोत
  • पोथी : रोळी मोळी ,
  • सिरजक : कमल किशोर पिपलवा ,
  • प्रकाशक : कलासन प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण