अभिनन्दन भाव-प्रधान प्रक्रिया है अर उण रो जलम मन रे मांयले खण में हुयोड़ो है पण आज बो बारणै आयर पोथी रे रूप में तन धारण कर लियो। अभिनन्दन करणो जुग-जुगान्तर सूं चालतो आय रैयो है। या नुवे जुग अर जमाने री कोई नुई चेतना कोनी, जी नै दस-बीस जणा त्यार हुयर करणै सारू खड्या हुवै। मन में जागी अर तन मे लागी हाळी बात अभिनन्दन री पुराणी परम्परा में कोनी जद सून मिनख जाग्यो, ग्यान जाग्यो, बुढे-बडेरों रै मान सनमान रो भाव जाग्यो,उण रे साथ ही अभिनन्दन रो जलम हुयो।
जूनै जमाने में भी अभिनन्दन हुवता रैया है। लोग बडेरां रो मान-सनमान करता आया है पण बीं जमाने री एक विशेषता ही के अभिनन्दन मन साथै मुख सूं हुवतो। उण में तन री पुळक अर मन री मुळक समायोड़ो रैवती। पुराणे जमाने में अभिनन्दन जीवण में एक रच्यो- पच्यो भाव हो। जद अभिनन्दन शुद्ध अभिनन्दन ही हो। उण सूं करणिए अर करावणियै रे तन-मन रा तार गूंजता।
राजा बादसावां रै जमानै रा लाखपसाब अर कोड़ पसाव अभिनन्दन रा ही रूप हा। महाराजा कविराजा नेै पालखी में बिठायर मान-सम्मान सूं पलक पांवडा बिछावता। गांव रै गौरव सूं राज-दरबार ताई कविराजा रो अभिनन्दन हुबतो। सारी जनता देखती। बो अभिनन्दन पोथी रूप में कोनी हो, मायले मन रो हो। जगांई बो पक्को अर प्रभावी हो।
आज रो अभिनन्दन तो दो घड़ी री चेळ है। फेर जियां चिड़ियां में भाठो पड़ज्या ज्यूं न अभिनन्दन करणियां रो अतो पतो लागे अर न करावणिए नै कोई पूछे ताछे। आज सारो काम भाड़ै पर करवाल्यो। करणिया थणां ई चक्कर काटता, टोह लगावता फिरै है धन कमायर धन सूं अभिनन्दन कर दयो पण मन अर मान कठेै? मन बिना अभिनन्दन एक नाटक मात्र हूवै अर वा ही बात आज प्रायः देखणै में आवै है।
आज अभिनन्दन करावणियै रो कोनीं, करणियै से प्रचार मात्र है। आज पोथ्यां रो अभिनन्दन पोथ्यां में ही बन्द हुयो पड्यो रैवै। एक बर घणी धूम घाम माचै, लोग भेळा हूवै। छोटा-बड़ा नेता भेळा हूवे, भाषण झाड़ै ऊंची ऊंची बातां केवै यो नाटक पूरी हूयो अर खेल खतम। आप आप रो हिसाब कर सगळा आप आप रै हिल्लै लागे।
अभिनन्दन करणियां ने छोड़ो। कदै कदै अभिनन्दन करावणियां भी भीतरी रूप में घणा सक्रिय रैवे अर चावे के महारो अभिनन्दन हुवे। ग्रंथ छपे भारी भरकम बाजा बाज बड़ा बड़ा लोग भेळा हुवै। मंत्री सूं कम रैंक रो ओहदेदार अभिनन्दन ग्रन्थ भेट न कर्यो तो कोई अभिनन्दन हुयो?
या गत है,आज रै अभिनन्दन री लोग पोथ्यां पर पोथी छाप रैया है अर लोगां नै धड़ाधड़ भेंट कर रैया है। आज यो भी एक घन्धो बणगो या बणा लियो गयो, कुण जाणै? पण अभिनन्दन ग्रन्थों री भीड़ भेळी हूयरी है, ई में सदेह कोनीं।
ई बात रो मने नेड़े सूं अनुभव है। मैं शोध से विषय लियो 'अभिनन्दन ग्रन्थारी उपयोगिता अर शोध-खोज में तन, मन अर धन सूं लाग्यो। ई विषय री 'सामग्री सकलन' तांई मैं जगा जगां घूम्यो भटक्यो अर लूठां लूठां साहित्यकारां सूं मिल्यो। सैकड़ो अभिनन्दन ग्रन्था नै निजर मांय सूं निकाळर वा पर 'नोट्स' लिया। दो-ध्यार हस्तलिखित अभिनन्दन ग्रन्थ भी मेरें देखणं में आया। वे वर्णा पुराणा हा वां रो कले वर आज से ग्रन्थां सूं एकदम अळगो हो।
एक दिन ई काम तांई मैं एक नगर रै लूंठे अर पुराणे पुस्तकालय में गयो।
बठै शोध-खोज-हाळा खातर रैवणै, सोवणै अर पढणै से प्रबन्ध हो। पुस्तकालय में अभिनन्दन ग्रन्थों री एक न्यारी ढाणी सी बस रई ही अभिनन्दन ग्रन्थ बठै विश्राम करें हा। मैं बांने बारी-बारी सूं देखरण लाग्यो। कई ग्रन्थ तो एक ई सम्पादक द्वारा सम्पादित करयोड़ा ह। कई ग्रन्थ एक ही लिखारै रा लिखोड़ा हा। अनेक ग्रन्थ इसा हा जिणां पर दरजणां सम्पादका रो नाम एक साथै मडघोड़ा हा पण प्रधान सम्पादक एक ही हो। ई ग्रन्था ने देखर मेरी पैलो धारणा तो या बरणी के यो भी खूब व्यौपार हैं! बस, करणियो चलतो पुरजो हुवणो चाहिजे।
ग्रन्थां ने पढता पढतां बेरो पड्यो के कई ग्रन्था तो अठै आयां पछै खुल्या ही कोनी। चिप्योड़ा पानां ई बात रा सबूत हा। कइयां री कमर करड़ी हुयोड़ो हो, बे इब तांई मुखड़ो बन्द कर्या ई पड़या हा 'ईस्यू' रजिस्टर देख्यो तो एक भी ग्रंथ आयां पछै बारी कोनी निकळघो।
ग्रन्थां में भी कई श्रेणियां रहा, भारी भरकम अर माड़ा मरियल पण किलो आध किलो वजन सूं हळको एक भी कोनीं हो। कई शानदार आवरण सूं सज्या धज्या हा तो कई डील उघाड़ा निरधनिया मिनख रै तन मन पर धन से छायां इणां पर पड़ी साफ दोखै ही। संसार में काम तो सगळां रा हो सरे, पण डोळ सारू।
ग्रन्थां री विषय सामग्री री उपयोगिता खोजण तांणी में बां में डूब्यो तो पढतां पढतां ई नींद आायगी। नींद में उणीज अभिनन्दन ग्रन्थां री भीड़ सामै आई। भीड़ माँय सूं एक ग्रन्थ आगे आयर बोल्यो, 'मैं अठै आवणिये ग्रंथां में सब सूं जूनो हूँ। मनै अठै परवेस करया एक बीसी सूं ज्यादा हुयगी। मैं जलम्यो जणां घणा बाजा बाज्या लोग खूब खुसियां मनाई। देस रे लूंठै नामी बड़े ओदैदार अफसर रै धनभागी हाथां सूं मैं सूरज री किरणां रा पैल-पोत दरसण कर्या अर धनभागी रे हाथां में भेंट करयो गयो। लोग मनै देखर घणां हरखाया, मुळक्या अर तालियां बजाई। उचक उचक र मेरो मुखड़ो जोयो। मेरै मन रा तार-तार नाचे हा। इसड़ो धनभाग स्यात भगती - जुग रे सा री लूठी धार्मिक पोथ्या नै भी नी मिल्यो हुसी। पण भेंट रै दिन तो धूमधाम रई अर पछै लोगों से मिलणी बंद हुयग्यो। आज तो मैं ताळै मांय बंद हूँ। कोई पूछे ई कोना कांई बेरो, तेरे मन में म्हानैं देखण री सनक कैयां चेतगी? मेरो मन घणो दुखी है।
ईं रे समर्थन में सगळा ग्रंथ बोल पड़या कम अर बेसी, सगळा ग्रंथ आपरा दुखड़ा एक ई राग में रोया पुराणिया क्यूं बेसी दुखी हा अर नुयोड़ा जमाने री हवा मे ई जलम्योड़ा हा। ई कारण वै रोवे नीं हा, रोळो करै हा।
मेरी नींद टूटी कोनीं। सुपनो बदळगो इबके ग्रथां रा लेखक अर सम्पादक भेळा हुयरर आया अर बोलण लाग्या 'देख भाया, तू भी साहित्यकार है अर म्हैं भी साहित्यकार हां। आपणो धंधो एक ई है। जे म्हारी पोल खोली अर पेट पर लात मारी तो म्हें तेरो काम पार कोनी पड़ण देवांगा। जे क्युं लिखे तो म्हारी बडायां लिख अर अभिनन्दन ग्रन्थों री उपयोगिता दिखा, नहीं तो यो मैदान छोड़ दे। जे म्हारो कवणो नी मान्यों तो पछै देखिये म्हारो भी चमत्कार। मै ई' धमकी सुं चिमक्यो अर इन्नै पुस्तकालय री खिड़की रा किवाड़ हवा सूं 'फट' दे बन्द हुया। खुड़को सुण र मेरी नींद टूटगी। मैं हड़ बड़ायर उठ्यो। आंख्यां आगे सुपने री रीलों सी घूमे ही मैं विचार में पड़गो के यो कांई जंजाळ आयो? मैं बठे सूं उठर सीधो मेरे गाइड कन्ने आयो अर विषय बदळणं री अरदास करी। मेरी हैरानी देखर गाइड गंभीर हुयो अर दूजै दिन फुरसत में मिलणं रो सलाह देई।
मेरो सोच मिट्टयो कोनीं। मैं बैठ्यो बैठ्यो सोचू हूं के आाज रा अभिनन्दन ग्रंथ इयां हो धड़ल्लेै सूं धमाधम करता आवता रैया तो बांनै पुस्तकालय में धरण नै ठोड कठा सूं मिलसी! पण जमाने री हवा नै कुण रोके?